मौत का मंजर
एक तरफ मौत का मंजर
दूसरी ओर युद्ध की ललकार
ऊपर वाले तू सृष्टा औ हन्ता
तो चारों ओर कैसी हाहाकार
मानवता चीत्कार कर रही
सिस्टम पर प्रश्न खडा कर रही
खाने पीने को हो गये मोहताज़
पर चीन तुझको जरा भी न लाज
ऊपर वाले तू ही बता
कैसी यह बारुदी फुंकार ।
लाशो के ढेरो का न कोई रखवाला
देख तेरी जो सुन्दरतम सृष्टि को
उठा फेंक रहा कचरे वाला
खौफ इतना कि खुद मानव डरा
तन्त्र भी हारा इस जैविक हथियार से
ऊपर वाले तू ही बता
कैसी यह युद्ध की झंकार ।
जनजीवन कितना व्याकुल
लाँक हो गयी सारी व्यवस्थाएं
एक छोर से दूसरी ओर कैसे जाए
बाँध लगेज लापसी को तैयार मजदूर
पर सिस्टम के आगे है मजबूर
ऊपर वाले तू ही बता
क्यों है मजदूर लाचार ।
यह देखो प्रसव पीडा से कराहती
जिसके उदर पले नादां शिशु
सारा तन्त्र है सेवा में मुस्तैद
पर नियति की कैसी नादानी
जन्म देती है वह चलती राह पर
ऊपर वाला तू भी रोया
सुन यह अबोध गुंजार ।
डा. मधु त्रिवेदी