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31 May 2018 · 1 min read

मौत आनी है मना कौन करे

—–ग़ज़ल—-
2122 1122 22

ज़िन्दगी भर ये ख़ता कौन करे
दर्द की फिर से दवा कौन करे

यार ख़ुदग़र्ज़ है जहां सारा
हम ग़रीबों का भला कौन करे

छेड़ मत यार पुरानी बातें
ज़ख़्म को फिर से हरा कौन करे

अपने अश्क़ों को किया है चादर
तेरे ज़ुल्फ़ों की रिदा कौन करे

जबकि मिलता है सुकूं ग़ुरबत में
फिर ख़ज़ाने की दुआ कौन करे

दोस्तों ने ही मुझे लूटा है
यार गैरों से गिला कौन करे

हमनें तो सोच लिया है “प्रीतम”
मौत आनी है मना कौन करे

प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती(उ०प्र०)

1 Like · 1 Comment · 194 Views
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