मोह
मोह
माँ के चरणों को छोड़ ,
सुख भूल पिता के कामों का ,
कोमल तरु की छाँव छोड़कर ..
भटक रहा हूँ इन नगरों में ।
प्रिये !
मदन बसा है इन नेत्रों में ,
हृदय में बिछुड़न ज्वाला ,
उत्कण्ठित हूँ एकत्व हो ,
महामिलन की वेला को ।
शुभगे !
श्रवण किये हैं जो प्रेय स्वर ,
कैसे भूलूँ उनको ,
भूल चूका हूँ जग में सब को ,
तुम को कैसे भूलूँ ।
प्रियतम !
अधरामृत की हाला से ,
कैसे चल पायेगा जीवन ,
कुम्भज की नव किशलय दल पर ,
बैठा मैं भूखा अली हूँ !
माणिक्य बहुगुना