मोह
निवेदिता अपनी सास को खाँसते देख गरम पानी का ग्लास पकड़ा बोली मम्मी ज़रा कम बोलिये बहुत खाँस रही हैं इतना सुनते ही फिर बोलना शुरू अरे अब मेरा कोई ठिकाना नही है तुम लोग मेरे कमरे से सब पुरानी चद्दरें समान बाँट कर कुड़ा हटाओ तो मुझे चैन आये…इतना सुनते ही निवेदिता बोली मम्मी ज़मीन जायज़ाद और गहनों का बटवारा अपने जीते जी कर दिजिये ये गुदड़ ना बटे और ना हटे तो कुछ ना होगा जीते जी ती प्रेम ना सिखा पाईं बाद के लिए भी बबूल ही बो रही हैं… अरे अभी कौन सा जा रही हूँ मैं कर दूंगी बटवारा इतनी भी जल्दी क्या है….मम्मी अभी तो आप चादरें और पुराने समान के बाँटने की बात कर रहीं थीं निवेदिता ये बोलती हुई सास का चेहरा देख रही थी उनके चेहरे पर कोई भाव न था…निवेदिता सोचने लगी इन्होंने तो अपनी सास से कितनी जल्दी बटवारा करवा लिया था बाद में उनकी खूब दुर्दशा हुई पता नही उस बात का डर है या अर्थ का मोह जो आसानी से छूट नही रहा ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 02/07/2020 )