मोह
मायामोह
एक मकड़जाल
सतत उधेड़ बुन
मकड़ी है मन
ताना बाना में जीवन
मोह संबंधों का
विविध अनुबंधों का
मोह है लक्ष्य का
मोह अगम्य का
तज कर मोहमाया भरमाए
सिद्धार्थ भी कहाँ मोह छोड़ पाए
पलायित कर उत्तरदायित्व
प्राप्त पूर्णत्व बुद्धत्व
मानव मूल का सत्व
ये भी तो मोह के तत्व
आत्मा का आश्रय एक खोह
भौतिक तन भी तो मोह
परिवर्तित होता स्वरूप
मोह जीवन के अनुरूप
मोहभंग विरक्ति
विषयहीन विभक्ति
पलायनवाद की अभ्युक्ति
मोह से सच्ची मुक्ति
जीवन से मुक्ति
-©नवल किशोर सिंह