मोहल्ला घूरता है
बलात्कार मेरा हुआ, अस्मत मेरी लुटी हुई,
मैं दुपट्टे के पीछे मुँह अपना छुपाती हुई,
खुलेआम मुँह उघाड़े, वह बेपरवाह घूमता है,
उसे कोई हीनता से देखे न देखे,
मुझे मेरा मोहल्ला घूरता है।
वे पूछते हैं,
तन पे क्या पहना था मैंने ,रात कितने बजे निकली थी,
जीन्स पहनी थी क्या मैंने, क्या चुन्नी नहीं ओढ़ी थी।
दोष उसका नहीं दोष पहनावे का है,
जो जवान आँखे फिसलीं थीं ।
आज कुछ रिश्तेदार आए थे पापा से मिलने ,
मुझे बाहर जाने की इजाजत नहीं थी
पीछे वाले कमरे में छुपा रखा था,
वहाँ से मेरी आह भी सुनाई न पड़ती थी।
मॉं भी आज सहमीं सहमीं सी है,
वह निगाह झुकाए चलती है।
बिटिया दिखाई नहीं पड़ती ,
आज हर कोई कोई उसे ही पूछता है,
उसे कोई हीनता से देखे न देखे ,
मुझे मेरा मोहल्ला घूरता है ।
कल तक मैं अपने बाबा की लाड़ली थी,
आज उनकी लज्जा का कारण हूँ,
गौर से देखिए मुझे,
मै इस समाज में लड़कों की परवरिश का तारण हूँ ।
कुछ दिनों बाबा ने सगाई की बात चलाई
तो कानाफूसी शुरू हो गई,
हादसे की जो बेल सूख चुकी थी
वह फिर हरी हो गई।
मैं भूलना भी चाहूं,
पर मेरा समाज कहॉं भूलता है,
मैं नफरत की कैद में ,
और वह नाबालिग बनकर खुला घूमता है।
उसे कोई हीनता से देखे ना देखे
मुझे मेरा मोहल्ला घूरता है ।
लाखों जुटे थे चौराहों पर
कोने कोने पोस्टर लगे थे
बड़ा छोटा हर कोई निर्भया के लिए खड़े थे
उन दिनों लगा मानो ,
अब कोई बलात्कार न होगा,
अब हमारी सरकारें जागेगी,
कुछ शोरगुल , कुछ मोर्चे,
फिर वह कुनबा बिखर गया,
महीना भी न बीता होगा,
कि फिर एक बलात्कार से देश दहल गया ।
आज फिर वही बहस छिड़ी है ,
वही सवाल हर कोई पूछता है,
क्या पहना था उसने ,
रात कितने बजे निकलती थी,
जीन्स पहनी थी क्या उसने ,
क्या चुन्नी नही ओढ़ी थी।
मैं रात कितने बजे लौटी,
मुझे तो पड़ौसी भी पूछ लेता है ,
वह रातों को सड़कों पर आवारागर्दी करे,
उसे कोई नहीं पूछता है।
उसे कोई हीनता से देखे न देखे ,
मुझे मेरा मोहल्ला घूरता है ।
सुनीता सिंघल