“मोहब्बत ख़ुशबू है अविनाशी”
मोहब्बत ख़ुशबू है अविनाशी हवा में ग़ुम हो नहीं सकती
जहां में बदल भी जाये दस्तूर ये ख़ुशबू दमन हो नहीं सकती
नज़र-नवाज़ हैं कहीं आज भी ज़िंदा ज़माना क्या रोक पायेगा
बंदिशें हो लाख भले जहां में मोहब्बत फिर भी कम हो नहीं सकती
जब मिल जाते हैं दो दिल जम्हूरियत पासबाँ सब बोदे बोदे
मोहब्बत मिलन है दो रूह का, चंद गश्त-ऐ-ज़ोर से दफ़न हो नहीं सकती
आसमा भी झुका है मोहब्बत के सज़दे में, ये वक़्त गवाह है
मोहब्बत जलती शमा है, जो बुझ जाए कोई पल में हवन हो नहीं सकती
सदियों से बहती आयी है बहती ही रहेगी ये धार ख़ुशगवार
मोहब्बत सच्चा सौदा है दो दिलों का कोई भरम हो नहीं सकती
तमाम अफ़साने बने हैं, बनते ही रहेंगें बेक़रारी की कलम से
मुतमइन गुल-मुहर सी है दमकती, ये कोई टूटा भवन हो नहीं सकती
__अजय “अग्यार