मोहब्बत से बढ़कर तो इबादत नहीं कोई
मोहब्बत से बढ़कर तो इबादत नहीं कोई
सिवा नफ़रत के खुदा से बग़ावत नहीं कोई
तेरे झूठ का नहीं मलाल इस बात का है
तिरा-मिरा अब रिश्ता-ए-सदाक़त नहीं कोई
हसरतें बदलते ही हाय टूट गया वादा
इन दोनों के दरमियाँ मोहब्बत नहीं कोई
कोशिशें लाखों हर पल रखनी होंगी ज़ारी
खूबसूरती किसी की विरासत नहीं कोई
उसको भूल जाओ और समझो मर गया वो
सिवाय इसके दर्द की हिमाक़त कोई नहीं
नहीं करता खुल के तारीफ़ किसी गुल की वो
खुश्बुओं से तो उसकी अदावत नहीं कोई
कहीं झड़ी हैं दीवारें कहीं रंग उड़ा सा है
आज के इस दौर में ‘सरु’सलामत नहीं कोई