मोहब्बत में ग़र बेज़ुबानी रहेगी..!
मोहब्बत में ग़र बेज़ुबानी रहेगी,
तो इन्सां की दुश्मन जवानी रहेगी।
गुज़ारिश है तुमसे खफ़ा ना रहो तुम,
अदावत ये कब तक पुरानी रहेगी।
यूं नफ़रत करोगे अगर तुम जो हमसे,
तो फिर किस तरह जिंदगानी रहेगी।
वफ़ा ना सही तो वफ़ा के लिए ही,
कोई ज़ख्म दे दो निशानी रहेगी।
सलीका मुहब्बत का तुम सीख जाओ,
मोहब्बत से खूं में रवानी रहेगी।
इबारत जो मिलकर लिखी पत्थरों पर,
ज़माने को हरदम जुबानी रहेगी।
जो महफूज़ दिल को मेरे तुम रखोगे,
तो दिल में मेरी राजधानी रहेगी।
ग़मों में तुम्हारे ग़ज़ल लिख रहा हूँ,
किताबों में बनकर कहानी रहेगी।
यक़ीं हौसलों पर उड़ानों से ज्यादा,
“परिंदे” में ताकत रूहानी रहेगी।