मोहब्बत में अपना जो दिल हार आया
मोहब्बत में अपना जो दिल हार आया
समझ लो वही जीतकर प्यार आया
वो लौटा है तन्हा न महफ़िल से तेरी
मरज़ इश्क़ का साथ इस बार आया
भले इश्क़ है एक दरिया ए आतिश
जो डूबा है इसमें वही पार आया
लिये आइना था जो हाथों में अपने
वो नज़रों में सबकी ख़तावार आया
जिसे सबने माना था कमज़ोर, नाज़ुक
वही फाँदकर पहले दीवार आया
बिका झूट बाज़ार में ख़ूब यारों
न सच के लिये पर खरीदार आया
अकेला रहा वक़्ते मुश्किल में ‘आनन्द’
कोई दोस्त आया न ग़मख़्वार आया
~ डॉ आनन्द किशोर