मोहब्बत बेबस नहीं
मेरी कलम से….
चांदनी का यौवन खिल रहा है,
देखो चाँद चकोरी से मिल रहा है।
आओ उनके मधुर मिलन के,
हम भी गवाह बन जाएं।
ये मोहब्बत बेबस नहीं है अब,
चलो ये ज़माने को बतलायें।।
इतिहास के पन्नों में जो,
बरसों से मोहब्बत दफन है।
उसे जगाकर क्यूँ न,
संगदिल ज़माने को समझाएं।।
न करेंगे वफ़ा और जफ़ा की बातें,
न काटेंगे तारे गिन गिन अब रातें।
विरह अग्न को…..,
मिलन की फुहार से बुझा देंगे।
मोहब्बत दफन न होगी किसी कब्र में अब,
काम कोई ऐसा कर जाएं।
ये मोहब्बत बेबस नहीं है अब,
चलो ज़माने को ये बतलाये।।
रचनाकार,
कवि संजय गुप्ता।