मोहब्बत ने तेरी मुझे है सँवारा
मोहब्बत ने तेरी मुझे है सँवारा
तेरे बाजुओं ने दिया है सहारा
घटाओं के गेसू में उलझा पड़ा था
ऊँचे से पर्वत पर मौन खड़ा था
चंचल से झरनों ने मुझे है बुलाया
बुलाके रवानी का राग सुनाया
उफनती नदी में मुझे है उतारा
बहा जा रहा हूँ जिधर बहती धारा
होठों पे तेरे कलियों का डेरा
गुंजल से भँवरे लगाते हैं फेरा
गालों पे तेरे कँवल जो खिले हैं
गुलशन जो तेरे कदम से मिले हैं
बसंती रूतों ने मेरा रंग उभारा
महकती फिजाओं ने मुझे है पुकारा
–कुँवर सर्वेंद्र विक्रम सिंह✍🏻
★स्वरचित रचना
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