मोहब्बत-दीदे-दीदार
ये क़ातिलाना नज़रें किसी
गूजरी-सी
दिल के आर-पार हो जाती है
जैसे
तीर-चीर-दिल दिलबर
मोहब्बत-दीदे-दीदार हो जाती है।।
मधुप बैरागी
ये क़ातिलाना नज़रें किसी
गूजरी-सी
दिल के आर-पार हो जाती है
जैसे
तीर-चीर-दिल दिलबर
मोहब्बत-दीदे-दीदार हो जाती है।।
मधुप बैरागी