मोहब्बत के शरर का नूर है
मोहब्बत के शरर का नूर है
पास है खुशी उदासी दूर है
ज़हन-ए-इंसान ही मयखाना है
जिसको देखो नशे में चूर है
फूलों कलियों की गलियों में भी
ख़ूबसूरती उनकी मशहूर है
हुस्न की दुनियाँ ग़ुलाम उसी की
ज़बान में तहज़ीब-ओ-शऊर है
सूरत भी बहुत खूब सीरत भी
हां वही जन्नत की हूर है
गम को आँसुओं से धो न सकी जो
वो आँख भी कितनी मजबूर है
इल्म वो हुआ ‘सरु’ को दर्द से
अंधेरा भी गम का पूरनूर है