” मोहब्बत के दर्द “
ढल गई उम्र सारी उसको मनाते – मनाते,
मंज़िल की चाह में आरज़ू सजाते – सजाते।
वफा की राहों में खुद ही निकली वो बेवफ़ा,
रो पड़ा अंतर्मन भी नज़रें मिलाते – मिलाते।
एक मुस्कान थी,एक चाह थी और एक था ख़्वाब,
पर वो ख़ुश थी मेरा ये दिल जलाते – जलाते।
वो लम्हा भी अजीब था मैं भी ख़ुश नसीब था,
वह मिली थी एक मोड़ पे शर्माते – शर्माते।
न भूख थी न तो प्यास थी न ही कोई ग़म था,
फिर भी रुकी न जाम – ए – नज़र पिलाते- पिलाते।
कस्में जो खायी थी न तोड़ेंगे उम्र भर,
पर मांगी जुदाई आजमाते – आजमाते।
मोहब्बत का हु.ज्न गर न होता जहां में ‘ मधुर ‘,
तड़पता न महबूब ख़ुद अश्क बहाते – बहाते।
– श्याम बिहारी ” मधुर ”
सोनभद्र, उत्तर प्रदेश