मोहब्बत की आख़िरी हद, न कोई जान पाया,
मोहब्बत की आख़िरी हद, न कोई जान पाया,
दिल की गहराइयों में, न कोई राज़ छुपा पाया।
हर धड़कन में बसी हो, जो एक प्यारी सूरत,
उसके बिना अधूरी है, ये जिंदगी की मूरत।
आँखों में उसके बसते, सपनों के सारे रंग,
बिन कहे ही समझ ले, दिल के सारे संग।
“ऋतु राज ने”चाहा था उसे टूटकर, दिल ने दी आवाज़,
पर किस्मत ने दिखाया, इक अजीब सा मिजाज़।
मोहब्बत की आख़िरी हद, जब जुदाई बन जाए,
आँसू बनके आँखों से, हर पल गिरती जाए।
उसके बिना हर लम्हा, लगता है वीरान,
जीवन की राहों में, बस छाया है तूफान।
यादों के बिछाए हैं, चाहत के फूल सारे,
पर अब वो खिले नहीं, हम हैं अकेले बिचारे।
मोहब्बत की आख़िरी हद, शायद यही है दोस्त,
जब दिल को दर्द मिले, और होठों हो खामोश…!!!!
ऋतु राज वर्मा