मोहब्बत का पानी मिलेगा कहाँ पर…
है रिश्तों का हर बीज कमजोर इतना,
जमीं भी है बंजर उगेगा कहाँ पर।
नदियों में जल की जगह स्वार्थ बहता,
मोहब्बत का पानी मिलेगा कहाँ पर।
ऐ कुदरत मुझे बस तू इतना बता दे,
इंसाँ पतित क्यों है इतना यहाँ पर।
है रिश्तों का हर बीज कमजोर इतना,
जमीं भी है बंजर उगेगा कहाँ पर।
नदियों में जल की जगह स्वार्थ बहता,
मोहब्बत का पानी मिलेगा कहाँ पर।
ऐ कुदरत मुझे बस तू इतना बता दे,
इंसाँ पतित क्यों है इतना यहाँ पर।