मोहब्बत करने में वक़्त लगा
ऐ ज़माने! मुझे मोहब्बत करने में वक़्त लगा।
दिलबर अपने को खत लिखने में वक़्त लगा।
इस कद्र डूबी रही मैं उसकी मोहब्बत में,
मुझे खुदा की इबादत करने में वक़्त लगा।
बेरंग थी जिंदगी मेरी उनसे मिलने से पहले,
मोहब्बत की सजावट करने में वक़्त लगा।
बहुत डरती थी मैं बेवफ़ाई और जुदाई से,
बस यूँ मुस्कुराहट बिखरने में वक़्त लगा।
मोहब्बत उनसे पहली ही नजर में हो गयी,
जमाने की खिलाफत करने में वक़्त लगा।
मदहोश हो गयी मैं मोहब्बत को पाकर,
उसे पाने को आदत बदलने में वक़्त लगा।
मैं बदली, अंदाज बदला, बदल जिंदगी गयी,
नहीं नसीब को करवट बदलने में वक़्त लगा।
हाथ की लकीरें बदली उसे पाने की खातिर,
सुलक्षणा को किस्मत बदलने में वक़्त लगा।
डॉ सुलक्षणा अहलावत
रोहतक (हरियाणा)