-मोहबंध
सहला कर रूह को ममता का गान देती है
स्पर्श कर कैसे मोह में बांध देती है
गहराई और विश्वास के साथ
अनोखी खाई खोद देती है
बन जाता अनछुआ स्पृश
लगाव से भरी धार वाली
जैसे एक सुंदर रेती है
भर जाती है नेह नदी भांति
स्वच्छ नीर संग साथी है
अनुभुति की चलने लगती
खूबसूरत विशालकाय आंधी है।।
-सीमा गुप्ता अलवर