मोहन से नेह
मोहन से नेह
————-
तुमको में भूलना चाहूं मोहन,
तू और याद आता है।
मेरे दिल के मंदिर में, आकर घंटियां
बजाता है।।
अंधेरी रात से मुझको, लगता बहुत
है डर।
तुम चांद बनकर मोहन, जीवन में
रोशनी कर।।
जब कभी मैं बहुत परेशां होती।
तुझे याद कर , मुझमें शक्ति है आती।।
चलो बन जाए हम, दीपक बाती
का रूप।
पथ में चाहे कांटे हों या, तपती हुई
सी धूप।।
रखना सदा मुझको, अपनी बांसुरी
बनाकर।
बांसुरी समझ सदा, अपने होंठों से
लगाकर।।
मेरा दुःख मोहन बांट लेना,
बन जाना तुम भोर।
बांसुरी की धुन प्यारी लागे,
भावे नहीं कोई और।।
तुमको सब अर्पण किया,
मोहन मुरली वाले।
डसते हैं आकर पीड़ा के,
नाग काले -काले ।।
बनकर हमराज मोहन,
सदा तुम देना साथ।
तुम आकर थाम लेना ,
मुझ बावरी का हाथ।।
नित तेरा में पथ निहारूं,
सुबह और शाम।
भीगी पलकें दरश को तरसे,
पल-पल एक ही काम।।
सुषमा सिंह*उर्मि,,