” मोर “
“मोर”
*****
सुबह या भोर,
जब बादल हो घनघोर,
जंगल में नाचे मोर,
अपने पंख फैलाकर
चारों ओर।
खाते ये, कीट- पतंग;
रहते सदा ही मतंग,
जंगल में इधर उधर घूमे,
इसके रंग बिरंगे पंख देख,
हर प्राणी झूमे।
पक्षी ये होता विशालकाय,
ये कभी ऊंचा उड़ने ना पाए,
इसकी गर्दन लंबी और
ऊंची होती टांग,
आवाज निकाले ये,
बड़ा ही उटपटांग।
*****************
… ✍️प्रांजल
…….कटिहार।