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2 Aug 2016 · 4 min read

मोर्निंग वाक

“मोर्निंग वाक”

सवेरे पांच बजे से सात बजे का समय मानो या न मानो सभी के लिए सबसे सुखद व आनंदमय होता है. इतनी प्यारी नींद आती है कि जगाने वाले से यदि दुश्मनी भी लेनी पड़े तो निशंकोच ली जा सकती है.

पूरा प्रयास किया जाता है कि कोई न कोई बहाना चल जाए और बिस्तर से साथ न छूटे. फिर भी बेशरम घर के लोग धक्के मार, घर से बहार धकेल देने में सफल हो ही जाते हैं. मन मसूस कर रोड पर आकर खड़े हो ही जाते हैं.

एक बार पांच बजे की ठंडी-ठंडी हवा शरीर पर लगी नहीं की दिमाग तेजी से कार्य करने लगता है. सबसे पहले यह प्लान बनना चालू होता है कि किस ढंग से जल्दी से जल्दी घर वापस पहुंचा जाये. घर के सभी लोग जानी दुश्मन से नज़र आते हैं. कहते हैं कि शरीर में मिठास बढ़ गई है. सुगर ज्यादा है. डॉक्टर ने मोर्निंग वाक और एक्सरसाइज करना जरूर बताया है नहीं तों इन्सुलिन लेनी पड़ सकती है.

मन में टीस सी उठती है कि खुद तो आराम फरमा रहें है और मुझे अच्छी खासी नींद से जगा कर टहलने भेज दिया. तरह तरह के विचार प्रवेश पाने का भरसक प्रयास चालू कर देते हैं. पता नहीं किस जनम का पाप किया था जो इन लोगों से पाला पड़ा है, जिन्हें मेरा सुख पसंद नहीं. ये क्यों नहीं समझते नींद से बढकर मूल्यवान कुछ नहीं. उनसे पूछो जो नींद को तरसते हैं. सैकड़ो उपाय करते हैं. नींद लाने के लिए गोलियां खाते हैं. एक हम हैं, जिन्हें सवेरे से शाम तक बस नींद ही आती रहती है. सवेरे की नींद तों इतनी प्यारी लगती है कि ऑफिस देर पहुंचकर बॉस से डांट भी खाना पड़े तों मंजूर है. यह सब इन घर वालों को समझ में क्यों नहीं आता है.

इन बेशर्मो को तों नींद आती नहीं. सवेरे चार बजे से खटर पटर चालू कर देते हैं. ऐसा लगता है इनके लिए दिन छोटा हो जायेगा जो सारे काम सवेरे सवेरे ही निपटाना चाहते हैं. मुझे तों लगता है कि सवेरे सवेरे सारे काम इसलिए निपटाए जाते होंगे जिससे दिन में चठिया लगाकर मोहल्ले भर का प्रपंच कर संके. ये वो लोग हैं जो मौका पा दोपहर में झपकी भी मार लेते होंगे. नहीं तों इनकी आठ घंटे की नींद कैसे पूरी होती है. रात भी ग्यारह या साढ़े ग्यारह बजे तक जगा करते हैं. टीवी के सामने बैठकर सास बहू के प्रपंच वाले सीरियल देखा करते हैं. इन लोगों की नींद से दुश्मनी है. मुझे तों ऐसा ही लगता है.

चलो खुद न सोयें, मुझे तों सोने दें. मैंने इनका क्या बिगाड़ा है जो मुझे धक्के दे, घर से बाहर निकालने के लिए सवेर-सवेरे सब एक साथ हो जाते हैं. शुरू शुरू में तो में घर से निकल पार्क की सीट पर जाकर लुढ़क जाता था. ठीक एक घंटे बाद घर आ जाता था. साले इतने नालायक हैं कि आँखे देख पहचान गए कि टहलाई नहीं हुई. धीरे धीरे मैंने बीस चक्कर लगाने चालू कर दिए. बूढ़े बूढ़े बीस पच्चीस चक्कर मार देते हैं. में तों अभी पचास वर्ष ही पूरा किया हूँ.

देश के प्रधानमंत्री जी को पता चले कि लाखो लोग मोर्निंग वाक कर रहें हैं तों मोर्निंग वाक पर बैन लगा दें. मनरेगा स्कीम का पैसा उनको मिलेगा जो मोर्निंग वाक करते नहीं पाए जाएँगे. ऐसा बिल पास करा सकते हैं. मोर्निंग वाक मतलब शक्ति का दुरूपयोग. जाने कितनी हॉर्स पॉवर एनर्जी मोर्निंग वाक में लोग बर्बाद कर देते हैं . इसी एनर्जी को लोग किसी उपयोगी कार्य में लगा दें तों जीडीपी कितनी बढ़ जाएगी अंदाजा लगाना मुश्किल है. एसेट क्रिएशन में मोर्निंग वाक की एनर्जी का सदुपयोग किया जा सकता है.

एक जमाना था घर के बूढ़े, सवेरे दूध लेने, बाल्टी लेकर दो चार किलोमीटर टहल आते थे. दादा लोग लोटा लेकर खेत मीलों निकल जाते थे. इस बीच औरतें झाड़ू-पोछा गोबर की लिपाई, बर्तन मजाई, कुए से पानी भर कर लाना, कपडे की धुलाई सभी काम निपटा देतीं थी. कोई मोर्निंग वाक नहीं. जरूरत ही नहीं थी. पूरी दोपहरी खाना बना करता था. ऐसा लगता था जैसे चूल्हा बुझा ही नहीं. मर्द घर के बाहर के सारे काम निपटते थे और औरते घर के अन्दर के काम.

अब समय बदल गया है. घर के बाहर और भीतर दोनों ही काम औरते जिम्मेदारी के साथ करने लगी हैं. खान पान में बहुत ज्यादा परिवर्तन शरीर को बेडोल बनाने में सहायक हो रहा है. आदमियों के नाकारापन ने बीपी सुगर बीमारियों को पनपने दिया है. घर से स्कूटर / कार / मेट्रो से ऑफिस जाना फिर वैसे ही वापस आना. पैदल चलने का मौका ही नहीं. शरीर लचता ही नहीं. औरतो ने भी अपने को ओवन, वाशिंग मशीन, वाइपर, डिश वॉशर, वैक्यूम क्लीनर आदि पर इतना निर्भर बना दिया है की मांस लचाने की गुंजाईश ही नहीं बची है. पारिडाम औरते भी आर्थराइटिस बीपी सुगर बिमारियों की शिकार होने लगी हैं. मानसिक तनाव बढ़ गया है शारीरिक परिश्रम कम हुआ है.

आज थुल थुल शरीर लिए पूरा मेकअप कर मोर्निंग वाक के नाम पर फैशन परेड देखी जा सकती है. नए नए गैजेट व ड्रेस मार्किट में उपलब्ध हैं, जैसे ट्रैक सूट, स्पोर्ट्स शूज, गॉगल्स, बीपी बैंड, हार्ट रेट बैंड, एअर प्लग जो मोबाइल फ़ोन से जुड़ा ऐसे रहता है जैसे यही मंगल सूत्र है आदि. पूरे आधा घंटा मेकअप टाइम है. सभी परिधान रोज रोज बदल बदल कर प्रयुक्त होते हैं.

मोर्निंग वाक पर एनर्जी लास करने की बजाय इस एनर्जी को घर या बाहर सदुपयोग किया जाए तों शरीर स्वस्थ रहेगा, पैसे की बचत भी होगी और मोर्निंग वाक के कष्ट से बचा भी जा सकेगा.

{विनय कुमार अवस्थी}
देहरादून

Language: Hindi
Tag: लेख
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