मोरे सैंया
तरस रही तुम बिन मोरी अंखियाँ दरस दिखा जाओ सैंया ,
दर-2 भटकूँ , तेरी राह निहारूं ,दरस दिखा जाओ मोरे सैंया I
नैन तुम्हारे सागर से भी ज्यादा है गहरे ,
नूरानी चेहरा देखने को मन मोरा मचले ,
तुम्हरे दरस बिना हमरा घर-द्वार सब कुछ उजड़े ,
नज़र कर दो अपनी मेरी नैया सागर से पार उतरे ,
तरस रही तुम बिन मोरी अंखियाँ दरस दिखा जाओ सैंया ,
बड़े निठुर भये तुम, अब तो अपनी दरस दिखा जाओ सैंया ,
मैं बेचारी ,दुखियारी चौखट पर तेरी राह निहारू ,
बार-2 पडूं तेरे पैंया , कदमों के तेरे आरती उतारूं,
अगर न माने तो “प्रेम की माला ” मैं तुझ पर चढ़ाऊँ,
तेरे कदमों की धूल माथे लगाकर मैं नाचूं , इतराऊँ I
तरस रही तुम बिन मोरी अंखियाँ दरस दिखा जाओ सैंया ,
अंखियाँ मोरी निहार रही डगर को दरस दिखा जाओ सैंया ,
“राज” मन्दिर में न मिले, न मस्जिद में मिले सैंया,
सारे जग में खोजा पर कहीं भी न मिले मोरे सैंया,
नेक इंसान के दिल में झाँका तो बैठे मिले मोरे सैंया,
दिल की बगिया में प्रेम का पौधा लगा रहे थे मोरे सैंया,
तरस रही तुम बिन मोरी अंखियाँ दरस दिखा जाओ मोरे सैंया ,
आंसुओं से भीगी मोरी अंखियाँ , अब तो दरस दिखा जाओ सैंया ,
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देशराज “राज”