मोरे अँगना
मोरे अँगना में आई माई भुनसारे ।
मैं दर्शन करके विह्वल भई ।।
सुध बुध खो बैठी एक घड़ी ।
दोउ अँखियाँ मेरी सजल भई ।।
मेरे जन्मों के पुण्य उदय ।
जग जंजालों से हुई निर्भय ।।
नौं दिन नौं चुनरी चढ़ाऊंगी ।
यह कर लीन्हा मैंने निश्चय ।।
मेरी भक्ति भावना मैया के ।
चरणों में जग से प्रबल भई ।।
मोरे अँगना में आई माई भुनसारे ।
मैं दर्शन करके विह्वल भई ।।
मैं हूँ गरीब घर की बेटी ।
कुछ हार श्रृंगार न कर पाई ।।
टूटे से चावल हाथ लिए ।
एक अंजुली में जल भर लाई ।।
माता के दर्शन पाने को ।
गति सूरज की भी अचल हुई ।।
मोरे अँगना में आई माई भुनसारे ।
मैं दर्शन करके विह्वल भई ।।