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30 May 2019 · 1 min read

मोम सा दिल कभी पत्थर भी तो हो सकता है

मोम सा दिल कभी पत्थर भी तो हो सकता है
टूटकर वो बड़ा शायर भी तो हो सकता है

दोष हर बार क्यों मेहनत को ही अपनी देते
तुझसे नाराज़ मुकद्दर भी तो हो सकता है

हो न हैरान उसे देख मुकम्मल यूँ ही
वो मुकद्दर का सिकन्दर भी तो हो सकता है

मजहबी आग लगाओ न दिलों में सबके
राख अपना ही तेरा घर भी तो हो सकता है

आ के चुपचाप समा जाती है नदियाँ इसमें
कुछ परेशान समन्दर भी तो हो सकता है

ढूंढता रहता है क्यों ‘अर्चना’ की आंखों में
सोच इस दिल के तू अंदर भी तो हो सकता है

30-05-2017
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद(उ प्र)

1 Like · 354 Views
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