Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
21 Jul 2023 · 3 min read

संजय सनातन की कविता संग्रह गुल्लक

काश,मेरे पास
कोई गुल्लक होता
जिसमें हसीन लम्हों को
जमा रख पाता।
गुल्लक एक अरमान है,जो हमें संचय करने की सीख देती है और इसका एक दिन किसी विशेष परिस्थिति में टूट जाना या इसे तोड़ दिया जाना गुल्लक के स्वामी के लिये प्रसव वेदना से कम नहीं है,लेकिन टूटने के बाद बाहर निकले संचित धन को देखना भी पहली बार संतान को देखने जैसी सुखद अनुभूति से कहाँ कम है।
गुल्लक टूट गया,गुल्लक फूट गया और कविता के रुप में स्वर्णिम सिक्के बाहर आ गये। “गुल्लक” दीक्षा प्रकाशन,दिल्ली द्वारा प्रकाशित संजय सनातन की प्रथम काव्य संग्रह है। संजय सनातन पूर्व से ही सोशल मीडिया पर अपनी साहित्यिक विधा के साथ जीवंत उपस्थिति का बराबर अहसास कराते रहे हैं,जिसके कारण इनकी लेखनी में स्थिरता और प्रौढ़ता नजर आती है।पहली कविता से अन्तिम कविता कवि के यौवन काल के प्रारंभ से लेकर वर्त्तमान उम्र तक का यात्रा वृत्तांत है।पुस्तक की हर अगली कविता कवि का आम जिंदगी को करीब से देखने का तथा मानवीय संवेदना और मूल्यों को अवलोकन करती नजर आती है।समाज के अन्तिम पायदान पर खड़ा व्यक्ति भी कवि की सूक्ष्मदर्शी नजर से मुँह नहीं चुरा सकता है।कवि के समदर्शी भाव ने विभिन्न प्रकृति के पात्रों को एक सामूहिक मंच पर एक साथ खड़ा कर अपने शब्दों को मूर्त्त रुप देने का प्रयास किया है।इसमें तनिक भी संदेह नहीं है कि पुस्तक की भाषा सरल और सुगम है जो सरलता से अन्दर तक पहुँच कर मन को झंकृत करती है।इसलिये ‘उदाहरण’ कविता में स्पष्ट घोषणा है कि

लेकिन आप हमें
अनदेखा नहीं कर सकते।

“तुम्हें छलांग नहीं लगाना था कम्मो” में कवि का दर्द छलकता है।

कभी पुल को किसी ने
नदी में छलांग लगाते नहीं सुना।

जहाँ “बाजार” कविता बढ़ती महँगाई पर चोट है।खास कर मध्यम वर्ग के लोगों की महँगाई के साथ संतुलन बनाये रखने की कठिनता को दर्शाता है।

सारा बाजार
मेरी नपुंसकता पर
हँस रहा था
सरे बाजार मेरी इज्जत उतर गयी थी।

वहीं दूसरी ओर “उम्मीद का सूरज” भविष्य के प्रति आशा का भाव जगाता प्रतीत होता है।

उम्मीद का सूरज अभी डूबा नहीं था
उसे पक्का यकीन था
कील पहिये का साथ नहीं छोड़ेगा
और बैल जुए से इंकार नहीं करेगा।

एक उदास कुदाल,धान रोपती औरतें,वो जरना बिछनेवालियाँ,गोयठा ठोकती औरतें जैसी कविताएं आधुनिकता के चकाचौंध में भी अपनी वास्तविकता और संस्कृति को संरक्षित करने का संदेश देती है।

यकीन है उन्हें
जब सारे मशहूर चेहरे
दागदार हो जाएंगे
तब यही देहाती
मनहूस चेहरे
हुश्न के नये
प्रतिमान गढ़ेंगे।

“पोस्टमार्टम” कविता पोस्टमार्टम में सहायता करने वाले सहायक का अंदर तक पड़ताल कर लेती है।
लेकिन आपलोग भूल बैठते हैं कि
आखिर कलेसरा डोम को दिल भी तो है
जो अद्धा लेने के बाद भी
धड़कता ही रह जाता है।
“भीड़” कविता बढ़ती जनसंख्या, राजनैतिक महत्वाकांक्षा और असुरक्षा का भय पर तंज कसती नजर आती है।
इस रस्साकशी में
अपना देश कशमशा रहा है
तनी हुई गुलेल की तरह
उसके ललाट की नसें फटी जा रही है।
निस्संदेह पुस्तक की अधिकांश कविता ग्रामीण जीवन के यथार्थ और मिट्टी के महक की अनुभूति के संग पाठकों से सीधा संवाद करती है।ठेठ देहाती शब्दों का प्रयोग मन में हलचल पैदा करने के साथ कविता से अपनापन का अहसास कराता है।शायद ही कोई पाठक कवि के दार्शनिक भावों में सरोवार न हो पाये।पुस्तक की भूमिका श्री गौरीशंकर सिंह पूर्वोत्तरी जी के द्वारा लिखी गयी है जो प्रभावशाली ढ़ंग से पुस्तक की दशा और दिशा दोनों पर संतुलन बनाये रखने में सक्षम है। मेरी हार्दिक शुभकामना है कि संजय सनातन इसी तरह लिखते रहें और निर्बाध रुप से साहित्य का सृजन करते रहें।

1 Like · 192 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Paras Nath Jha
View all
You may also like:
*जीवन में हँसते-हँसते चले गए*
*जीवन में हँसते-हँसते चले गए*
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
गुजरे हुए वक्त की स्याही से
गुजरे हुए वक्त की स्याही से
Karishma Shah
अधूरा प्रयास
अधूरा प्रयास
Sûrëkhâ Rãthí
"रेलगाड़ी सी ज़िन्दगी"
Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
नारी तू नारायणी
नारी तू नारायणी
Dr.Pratibha Prakash
वो नए सफर, वो अनजान मुलाकात- इंटरनेट लव
वो नए सफर, वो अनजान मुलाकात- इंटरनेट लव
कुमार
दुःख,दिक्कतें औ दर्द  है अपनी कहानी में,
दुःख,दिक्कतें औ दर्द है अपनी कहानी में,
सिद्धार्थ गोरखपुरी
महत्व
महत्व
Dr. Kishan tandon kranti
दर जो आली-मकाम होता है
दर जो आली-मकाम होता है
Anis Shah
हवस
हवस
Dr. Pradeep Kumar Sharma
■ बस, एक ही अनुरोध...
■ बस, एक ही अनुरोध...
*Author प्रणय प्रभात*
नन्हीं सी प्यारी कोकिला
नन्हीं सी प्यारी कोकिला
जगदीश लववंशी
यह कैसी खामोशी है
यह कैसी खामोशी है
निरंजन कुमार तिलक 'अंकुर'
ना हो अपनी धरती बेवा।
ना हो अपनी धरती बेवा।
Ashok Sharma
नूतन सद्आचार मिल गया
नूतन सद्आचार मिल गया
Pt. Brajesh Kumar Nayak
क्या कहा, मेरी तरह जीने की हसरत है तुम्हे
क्या कहा, मेरी तरह जीने की हसरत है तुम्हे
Vishal babu (vishu)
हाथ कंगन को आरसी क्या
हाथ कंगन को आरसी क्या
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
जीवन में चुनौतियां हर किसी
जीवन में चुनौतियां हर किसी
नेताम आर सी
ग़ज़ल
ग़ज़ल
Dr. Sunita Singh
तेरे इश्क़ में
तेरे इश्क़ में
Gouri tiwari
23/98.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
23/98.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
रिश्ते , प्रेम , दोस्ती , लगाव ये दो तरफ़ा हों ऐसा कोई नियम
रिश्ते , प्रेम , दोस्ती , लगाव ये दो तरफ़ा हों ऐसा कोई नियम
Seema Verma
आकांक्षा तारे टिमटिमाते ( उल्का )
आकांक्षा तारे टिमटिमाते ( उल्का )
goutam shaw
जब वक़्त के साथ चलना सीखो,
जब वक़्त के साथ चलना सीखो,
Nanki Patre
राम नाम
राम नाम
पंकज प्रियम
तुम्हीं पे जमी थीं, ये क़ातिल निगाहें
तुम्हीं पे जमी थीं, ये क़ातिल निगाहें
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
चराग़ों की सभी ताक़त अँधेरा जानता है
चराग़ों की सभी ताक़त अँधेरा जानता है
अंसार एटवी
*कष्ट दो प्रभु इस तरह से,पाप सारे दूर हों【हिंदी गजल/गीतिका】*
*कष्ट दो प्रभु इस तरह से,पाप सारे दूर हों【हिंदी गजल/गीतिका】*
Ravi Prakash
अगर
अगर
Shweta Soni
Life is like party. You invite a lot of people. Some leave e
Life is like party. You invite a lot of people. Some leave e
पूर्वार्थ
Loading...