मोम सा दिल कभी पत्थर भी तो हो सकता है
मोम सा दिल कभी पत्थर भी तो हो सकता है
टूटकर वो बड़ा शायर भी तो हो सकता है
दोष हर बार क्यों मेहनत को ही अपनी देते
तुझसे नाराज़ मुकद्दर भी तो हो सकता है
हो न हैरान उसे देख मुकम्मल यूँ ही
वो मुकद्दर का सिकन्दर भी तो हो सकता है
मजहबी आग लगाओ न दिलों में सबके
राख अपना ही तेरा घर भी तो हो सकता है
आ के चुपचाप समा जाती है नदियाँ इसमें
कुछ परेशान समन्दर भी तो हो सकता है
ढूंढता रहता है क्यों ‘अर्चना’ की आंखों में
सोच इस दिल के तू अंदर भी तो हो सकता है
30-05-2017
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद(उ प्र)