मोम की गुड़िया
सांसे मेरी तेज़ हो रही,
ये हवा आज चुभ रही है,
रात के सन्नाटे में फंस गई हूं मैं,
ज़िन्दगी की लौ शायद बुझ रही है..
दिख रही है सामने मेरे मौत खड़ी,
मेरे जिस्म नोंचने को तैयार बड़ी,
देखो वो लोग मेरी ओर बढ़ रहे है,
मेरे हाथ पैर खींचे मोम की गुड़िया समझ रहे है..
कोई तो बचाओ, माँ बहुत दर्द हो रहा है,
ये हैवान, मेरी आत्मा को चीर रहे, ये शरीर शून्य को बढ़ रहा है,
मुझे मैला कर मेरी आहों को दबा रहा है,
ये कलयुग दानव मुझे सता रहा है..
शायद उसके मन की हवस रूपी आग ना बुझी,
वो आग के हवाले ज़िंदा मुझे कर रहा,
पहले अपनी वासना सेंकी फिर मेरा बदन,
ज़िंदा मुझे जला दिया, नहीं मिटेगी तपन..
पर मुझे पता है यहाँ कोई नहीं बोलेगा,
ये कानून है अंधा हर लड़की को निर्भया बना छोड़ेगा,
मेरे लिए कुछ कर सको तो ये करना,
इस बार बेटी नहीं, बेटा को मत जनना।