मोमबत्ती
मोमबत्ती
विरहिण-दिल,
मोमबत्ती की लौ
तिल तिल कर जल रहा है।
हृदय में इसके कोलाहल है,
चित्त भी अतिशय चंचल है
शनैः शनैः पिघल रहा है।
गर्म उसांसे छोड़ता हुआ
विकरित करता अँजोर।
बूँद बूँद,गरम तरल टपकाते
आंखों की कोर।
सतत प्रतीक्षारत,हिय आस लिए।
उर में कसक,मुखपर मधुहास लिए।
पथ को आलोकित करता निरंतर।
पिय मिलन की उत्कंठा प्रबलतर।
झरोखे से आते,छुप छुप कर
निर्मम,बेमुरौवत, हवा के झोंके,
वजूद मिटाने को उद्यत,
ठहर ठहर करते,फरेब औ धोखे।
सहता,कुछ न कहता
चाहत में स्नेही के
हरदम जलता रहता।
आखिर कबतक पिघलता रहता
मनमीत के लिये मचलता रहता
एक दिन लड़खड़ाई लौ
फिर फफक उठा जोर से,
संचित साहस सभी बटोर के
जीवनवृत्त का निकट है अंत,
खुशगवार थी जिन्दगी,
कसक बस मिल न सके हम
अच्छा,अलविदा हे कंत।
हा!कितना लंबा पथ है
स्नेही न पहुँचे चलते चलते।
मिटा दी अपने वजूद को
तेरी याद में जलते-जलते।
-©नवल किशोर सिंह