*मोबाइल*
तुम भी चुप हो
मैं भी चुप हूं,
तुम गुम हो कहीं
मैं भी गुम हूं।
पहले तुम बोलो,
पहले तुम मुंह खोलो,
अपनापन का रिश्ता है
बेगाना- सा लगता हूं।
तुम न पूछो कुछ मुझसे
फिर मैं क्या पूछूं तुमसे?
मन में बदल आते हैं
बूंदे भी नहीं बरसाता हूं।
मनोरंजन या कुछ तलाश हैं
या उधेड़बुन में जीवन है,
समाधान नहीं कोई निकलता हैं
शायद सही समय पर नहीं आया हूं।
मोबाइल रखकर पैकेट में
फिर आऊंगा फुरसत में
अभी यहां व्यस्तता है
दिल को यही समझता हूं।
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स्वरचित : घनश्याम पोद्दार
मुंगेर