मोबाइल का कैसा प्रभाव है !
मोबाइल का कैसा प्रभाव है,
वास्तविकता का अभाव है।
हर हाथ को काम मिल गया,
इक यंत्र में धाम मिल गया।
व्यस्त हम इस कदर हो गए,
भीड़ में भी अकेले खो गए,
हर कोई खुद में मसरूफ है,
छांव में भी देखो तेज़ धूप है।
सेल्फी का अजब खुमार है,
ट्विटर वाला भी बुखार है।
उंगलियों अब बात करती हैं,
बिन थके दिन रात चलती है।
रिश्तों को टेक्नोलॉजी ने,
अपने आगोश में ले लिया है।
भावनाओं को झूठे दिखावे ने,
पूरी तरह निगल लिया है।
आत्ममुग्धता का ये समय है,
न किसी का भान है न भय है।
चुप हैं सब, पसरी खामोशी है,
वॉट्सएप पर सारी सरगोशी है।
दर्शन नहीं प्रदर्शन का दौर है,
सोशल मीडिया का सिरमौर है।
इक सनक है, सब शिकार हैं,
मन में सबके बस विकार है।