*मोबाइल इंसानी जीवन पर भारी*
मोबाइल का चलन बढ़ रहा बेहिसाब है,
गन्दी वीडियो परोसी जाती
जो बच्चो से भी अब छुप ना पाती
इसी कारण सारी टूटी मर्यादा
और ना रहा कोई लिहाज है,
कनेक्टिविटी बढ़ रही है
मगर सिर्फ दिखावे की,
रिश्तों में आत्मीयता बची ना खास है,
वो दिन बचपन वाला, वो दिन संडे वाला मजेदार,
अब तो सिर्फ कट रहे महीने साल
ना मस्ती ना मज़ा बचा आस पास है,
अब वो दिन याद आते है आम,जामुन कें
पेड़ हमें अपने पास बुलाते हैं,
इस मोबाइल कें इर्द गिर्द रह गयी दुनिया सबकी,
खेल भी फीके सारे
त्योहारो में भी बची ना अब वो रौनक
क्योकि अब छोटे बच्चो कें हाथ में भी
ये मोबाइल घूमता फिरता दिन रात हैं”