मोदी-गांधी
“मोदी” किस अधिकार से तू चरखे से
फोटो जोड़ आया था…?
“गांधी” बैरिस्टर बड़े घर का
सभी कुछ छोड़ आया था…
“मोदी” कभी कुर्ता तेरा मैला,
और अब है, सूट लाखों का,
“गांधी” धोती बांध कर; रूह-ए-वतन
झंकझोर आया था…
“मोदी” ग़रीबों के लहू से
हाथ रंगे हैं तेरे, अब तक,
“गांधी” तो अहिंसक रहके
फौज-ए-फिरंगी मोड़ आया था…
“मोदी” तेरी सियासत की रोटी
सिकती है दंगे भड़काने पर,
“गांधी” तो दंगे रोकने को
रोटी-पानी छोड़ आया था….
“मोदी” की बातों से सदियों के
बने रिश्ते बिखरते हैं,
“गांधी” तो गंगा और जमुना के
किनारे जोड़ आया था…
“मोदी” के अकड़ की इन्तेहां तो देखो
के नपवाता है छाती तक,
“गांधी” दुर्बल-सा, गुरूर-ए-तख्त-ए-शाही
तोड़ आया था….
सुनील पुष्करणा