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27 Mar 2020 · 4 min read

मोदीकाण्ड/नोटबंदी और ज्ञानीचोर

सुनसान डगर की टापो से ,खटका होता भय का।
कोई उपाय तो होता होगा,मन के इस संशय का।
चोटों पर चोटे सहकर भी,सरहदें पर डटे है वो।
अनजान प्रहार से डटकर,मौत को टक्कर देते है वो।

हिमालय की सुरंगी वादी में
आतंक का साया छाया है।
दुश्मन पाक के आतंकी दस्तें,
जन्नत को लूटने आया है।
हिन्दुस्तानी शेर घुसने देते है,
भला शियार को अपनी माँद में।
बाज कहाँँ आता है हाथ,
सियारो की नाद में।

सरहद पर है घात लगी,उल्लू सी आँखों की।
मौका मिला,हमलें करते,चीखें उठती जोर की।।

यह चक्रव्यूह कई दिनों से चल रहा,
जन-जन के मुख की चर्चा थी।
हो आर-पार का युद्ध अभी,
अभी नहीं तो कभी नहीं।
ये बोले हिन्दुस्तानी सभी,
पाक को सबक सिखाना होगा।
Pok खाली कराना होगा,
लूटता भारत माँ का आँचल,
उसको फाँसी पर लटकाना होगा,
कश्मीरी घाटी में फिर से तिरंगा लहराना होगा।।

भारत माँ के मस्तक पर,केसर तिलक लगाना होगा।
दशकों से बिछुड़े भाई को, फिर से गले लगाना होगा।।

सिन्धु नदी के सौन्दर्य को,
फिर से हमें खिलाना होगा।
पाक का अस्तित्व
इस भूलोक से मिटाना होगा।
देश की सेना को
मिलकर आगे बढ़ाना होगा।
आतंक देश के खतरे को,
खाक में मिलाना होगा।

मिडिया से लेकर राजनीति गलियारों में
बस ! एक बात की धूम थी।
नकेल कसनी होगी,अब तो पाक पर
यह जन-जन की भी झूम थी।।

“इस हाहाकार में एक मनस्वी
सब देख रहा था बनकर तपस्वी ।”
मन में साध रहा था,अचूक ब्रह्मास्त्र को।
चुनौती दे रहा था,मन में खुले शास्त्र को।
अस्त्र – शस्त्र थे पहले ही,
बस ! चाह थी यथावसर की,
सब हो निरूपाय,
तोड़ दूँ कमर झटके से ही।

“ध्यान-भूमि से लौटे मनस्वी,
उनकी वाणी है ओजस्वी।”
लोहा सबने मान रखा है
उसके अद्भुद कांडो का।
ये क्या है ? क्या करेगा,क्या सबने सोच रखा है?
नहीं ? कोई अनुमान नहीं उसके हथकण्डों का।।

संध्याकाल गये मिलने,राष्ट्रपति भवन में ।
सबने सोच रखा,होगा ऐलान पाक पर ,
नजर थी सबकी भुवन में।

“शीतल रात का पहरा था,
आम आदमी बहरा था।
जग की सुखी रात में,
निंद्रा का पहरा था।
अभी समय के सिर पर सेहरा था।”

“बजे रात के आठ,
हो गई सबकी खड़ी खाट।
बेईमान रह गये हाथ चाट,
ये है मोदी का राज-पाट।
गाँधी बैठे राज-घाट,
करके गये है ठाठ-बाट।”

“चर्चा रातों-रात चली,
एक बात थी उड़ी चली।
दुष्टों को वो थी बड़ी खली
ये नेता है बड़ा कुटी-बली।।”

“हुई नोट की बंदी थी
रातोंरात पाबंदी थी।
ये कालेधन की बांदी(राख) थी
महलों में बनी चाँदी थी।”

बेईमानों का गया राज,
अब उत्पन्न होंगे नये साज।
पूरे होंगे सबके काज,
उज्ज्वल होगा सबका आज।।

मिला देश का साथ
नष्ट हुआ भ्रष्ट का पाथ।
मिला देश को सक्षम नाथ,
नहीं चाहिए देश को हाथ।

जनता जिसके साथ हुई, रंक से राजा बना वहीं।
कालाबाजारी, बेईमानी, भ्रष्टाचार नहीं सहती ये मही।
कब से सही स्वतंत्रता का सपना,संजोये रही है मही।
आजादी से अब तक,सब कुछ है ये रही सही।

नोटबंद की चर्चा चली,
सियासी घमासान मचा।
भ्रष्टाचारी दलों ने गुट करके,
एक नया आसमान रचा।।
अपनी पतनता को मोड़ देने,
नया ह्रासमान मंच सजा।
जनता समझ चुकी मनसूबों को,
सोचा ये है नया प्रपंच रचा।

“दिल्ली से दिल दहलाने,
राजनीति से जनता को बहलाने।
अपने घावों को सहलाने,
बंद नोट को फिर से चलाने।
नेताओं की भीड़ जमी,
नये खोजने करण-समी ।(समीकरण)
काम न आया न बात जमी
सबमें थी कुछ-थोड़ी कमी।”

जनता ने शासन का साथ दिया।
लगी कतार में देश हित से,ले हाथ नया दीया।
कुछ खाया-पिया बाकी सब भुला दिया।
हुए देश की खातिर बेहाल,ये खतरा मोल लिया।

विपक्ष सत्ता के गलियारों में,
गूँज उठी है देश की।
हम भोली जनता नहीं है,
इस परिवेश की।
देश हमारा हम देश के,
भारत माता सर्वेश की।
पाकर परिचय जनता तेरा,
चौंक गई दुनिया विदेश की।।

“नसबंदी का नारा था,
नसबंदी के तीन दलाल।
‘संजय,इंदिरा,बंशीलाल’
नोटबंदी का नारा है
कालेधन के तीन दलाल
‘राहुल,ममता,केजरीवाल।”

क्या ये है?भारत माँ के लाल।
क्या तभी सभी ने घोटालों से किये कमाल ?
ये शोर मचा रहे है क्यों ?
इनका हड़प लिया किसी ने माल ?
ये हैं इनकी शतरंजी चाल,
नये प्रपंच रहे है पाल।
‘क्या ये है भारत में लाल ?
फिर से बनेंगे क्या दिल्ली का दलाल ?
अब हो रहा है पप्पू को मलाल,
मैडम भी खाने लग गई मिर्ची लाल।
पर कोई न कर पाया तीर धमाल।
माया के भी है बुरे हाल ।।

नोटबंद की जुबानी कहानी
अब बरसों तक रहेगी याद।
कुछ सुधार जरूरी थे,
गरीबी से लड़ने को।

नोटबंदी की धुन,लोगों का साहस
खगोल में घूम रहा है बन के नाद।

राजेश कुमार बिंवाल’ज्ञानीचोर’
कविता लेखन तिथि – 17 जनवरी 2017 मंगलवार
समय शाम 06:00 से रात 10:55

Vpo -रघुनाथगढ, सीकर,राज
9001321438

Language: Hindi
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