मोती माला बिखर जाती है
मोती माला बिखर जाती है
**********************
जब प्यार की आँधी आती है
बेचैनी बढ़ा कर जाती है
रिद्धि,सिद्धि कहीं पे खो जाए
बुद्धि लब्धि शून्य हो जाती है
संवेदना से मन है भर जाए
बौद्धिक स्तर गिरा जाती है
महबूब दिखे चहुंओ र सदा
कोई चीज नजर न आती है
भंवर में जैसे मीन फंसे
नाव मंझधार बह जाती है
किनारे भी नजर नहीं आते
गहराई में फंस जाती है
रिश्ते नाते सब हैं गौण लगें
माशूक मय सी छा जाती है
दिन में ख्वाब देखे हैं जाते
रजनी सजनी बन जाती है
फूल कलियों की बातें होती
जीवन में बहार छा जाती है
सुनहरे स्वप्न सजायें जाते
हसीन सब्जबाग दिखाती है
सुखविंद्र कहीं का ना रहता
मोती माला बिखर जाती है
*********************
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)