मॉ की टीस
मांए जब बिलखती है ,
कलेजा छलनी हो जाता है।
पापिन मंजर नाचती है ,
रब भी सजदा करता है।
चित्कार हृदय भी करती है,
अम्बर का सीना फटता है।
मॉए जब बिलखती है………।
जिसके लिए वो बिकती है,
दामन दाग वहीं लगाता है।
जिसके लिए पेट काटती है,
भूखा हरदम वहीं सुलाता है।
जीवन की कैसी नियति है,
देखो कैसा भाग्य विधाता है?
मॉए जब बिलखती है………।
जिसके लिए घर बनाती है,
वृद्धा आश्रम छोड़ आता है।
एक बार रूठने पर ,
मॉ सौ बार मनाती है।
मॉ के रूठने पर बेटा ,
सौ बात सुनाता है।
अंगुली थमा राह जिसे दिखलाती है,
बड़ा हो मां को वो आंख दिखाता है।
मॉए जब बिलखती है………………।
खुद रुखा सूखा खाकर ,
वो मालपूएॅ॑ खिलाती है।
जब उम्र हुई उसकी खाने की,
दरवाजे से दुत्कारा जाता है।
दुत्कार सुन पगली बन जाती है,
क्युकी इज्जत पैरो की बेड़ी बन जाता है।
मॉए जब बिलखती है…………………..।
टीस सत्येन्द्र हृदय की उठती है,
मॉ का मंजर मातम सा होता है।
चार कांधे कि भी हसरत मिटती है,
जन्नत अब उसको फिका लगता है।
फटी हुई आंखे सब कह जाती है,
छोड़ धरा पर सब कुछ सब जाता है।
मॉए जब बिलखती है
कलेजा छलनी हो जाता है।
…………..सत्येन्द्र बिहारी..………….