मॉं करके शेर सवारी, हर दो जग के दुख भारी (भक्ति गीत)
मॉं करके शेर सवारी, हर दो जग के दुख भारी (भक्ति गीत)
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मॉं करके शेर सवारी, हर दो जग के दुख भारी
1
तुमको पर्वत पर पाते, मंदिर ऊॅंचा पाया है
श्रद्धा से चल दुर्गम पथ, दर्शन करने आया है
यात्रा के दुख सब भूला, मॉं की छवि जहॉं निहारी
2
बलशाली चक्र सुदर्शन, लेकर कटार फिर आओ
अपने त्रिशूल को देवी, असुरों पर पुनः चलाओ
दुष्टों से सब पीड़ित हैं, सज्जन नर-सज्जन नारी
3
हाथों में सदा गदा है, हाथों में धनुष उठाए
तुम वीर-वृत्ति को दिल में, माता हो सदा समाए
ताकत है सत्य तुम्हारी, जन-जन मंगल हितकारी
4
बूढ़ा हो बाल-युवा हो, सबको ही दिया सहारा
तुम वृक्ष अलौकिक वह हो, फल से जो कभी न हारा
मिलती जिसको तुम मॉं हो, उसकी सब दशा सॅंवारी
मॉं करके शेर सवारी, हर दो जग के दुख भारी
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रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451