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16 Jul 2019 · 1 min read

मै सिमटकर रहूँगा कब तक ?

मै सिमटकर रहूँगा कब तक ?
यूँ रात भर जगूँगा कब तक ?

बदन दुखता है बैठे- बैठे
मै चाँद को घुरूँगा कब तक ?

एक दर्द उठता है रोजाना
अहजान संग जियूँगा कब तक ?

ज़ख्म-ए-जबीं तस्वीर बनी है
रंग चुन चुन भरूँगा कब तक ?

आकर खुशी यह बताती चल
नौबत-ए-ख्वार गिनूँगा कब तक ?

आदत नही छुपाने की थी
दम घुट घुट के सहूँगा कब तक ?

दर्द यह कितना कातिब है ‘मनी’
कि मरसिए पढ़ कहूँगा कब तक ?
-शिवम राव मणि

1 Like · 311 Views
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