मै श्रमिक हूँ
संदर्भ :- प्रस्तुत कविता देश के उस वर्ग के लिए है जो वास्तव मै देश का निर्माण करता है परंतु हमेशा छला जाता है………आशा करता हूँ पसंद आए…. ।
कविता :-
हाँ मै श्रमिक हूँ
देश का सारा बोझ उठाता हूँ
कोल्हू के बैल की तरह जोता जाता हूँ
हाँ मै श्रमिक हूँ
धन बल से मै ठगा जाता हूँ
अक्सर अकारण छला जाता हूँ
हाँ मै श्रमिक हूँ
दो रोटी के लिए पैसा कमा कर
बमुश्किल घर खर्च चलाता हूँ
हाँ मै श्रमिक हूँ
ऊँची लंबी इमारतें बनाता हूँ
पर सारी जिंदगी झुग्गी मै गुजार जाता हूँ
हाँ मै श्रमिक हूँ
धरती खोद कर सोना निकाल कर लाता हूँ
पर कभी उस सोने को भोग नहीं पता हूँ
हाँ मै श्रमिक हूँ
भरी दोपहरी मै पसीने से तरबतर बोझ उठाता हूँ
पर चंद पैसो के लिए भी छला जाता हूँ
हाँ मै श्रमिक हूँ
कुछ खाने भूक मिटाने
मै झुटे बर्तन मांज लेता हूँ
हाँ मै श्रमिक हूँ
पढ़ा लिखा कम हूँ इसलिए
अक्सर अपने हक की लड़ाई हार जाता हूँ
हाँ मै श्रमिक हूँ
बरसों से मै गिराया कुचला जाता हूँ
पर पूरी निष्ठा से अपना कर्तव्य निभाता हूँ
हाँ मै श्रमिक हूँ
मेरी कोई जाति नहीं
मै असली हिंदुस्तान कहलाता हूँ
हाँ मै श्रमिक हूँ
देश के हर निर्माण मे भागीदार हूँ पर
पलट कर जब भी पीछे देखता हूँ खूद को अकेला पाता हूँ
✍?हर्ष लाहोटी 9589333342