मै बेटी हूँ
मैं बेटी हूँ तो क्या मुझको, जीने का अधिकार नहीं
मैं क्यों मारी जाऊँ क्या मैं, ईश्वर का उपहार नहीं?
मुझसे ही है दुनिया सारी, क्यों करते ये विचार नहीं
तुम पर बोझ बनूंगी मैं अब, इतनी भी लाचार नहीं।
माँ भी मैं हूँ, बहन भी मैं ही, मेरे बिन संसार नहीं
पत्नी बन मैं धर्म निभाऊँ, क्या इसका उपकार नहीं ?
मैं शारदा, रमा स्वरुपा, फिर क्यों मेरा सत्कार नहीं
अपनी हैवानियत के आगे, सुनते तुम चीत्कार नहीं।
कब तक ऐसे दुख मैं सहूंगी, क्या इसका प्रतिकार नहीं
कैसी बीमारी समाज में, क्या कोई उपचार नहीं ?
अपने पैरों पर चलती हूँ, मैं दुनिया पर भार नहीं
मैं भी नभ को छूना चाहूँ, बेटा ही होनहार नहीं।
मैं भी खुलकर जीना चाहूँ, क्या जीने का अधिकार नहीं?