मै पुरखों की बनी हुई
कविता
भारत मां की हंसी खुशी सब लाज तुम्हारे हाथों में।
चूड़ी कंगना टिकिया बिंदिया साज तुम्हारे हाथों में।
में पुरखो की_ बनी हुई_ वो शान_ नहीं लुटने दूंगा।
भारत मां के_ आंचल की_ मै आन _नहीं लुटने दूंगा।।
झूठी सांची बातों से_ अब पर्दा उठने वाला है।
भूखे नंगे चुगलों का_ वरमाला उठने वाला है।।
मै पुरखों की बनी हुई पहचान नहीं मिटने दूंगा।
मैं दे दूंगा प्राण मगर ये शान नहीं मिटने दूंगा।।
दोष ना दो तुम दुनिया को ये अमर नहीं यूं काया है।
जो भी हमसे गलत हुआ वो सब ईश्वर की माया है।।
मै लुच्चों के अरमानों का साज_ नहीं सजने दूंगा।
मै चिंगारी₹ ज्वाला हूं_ पर आग _नहीं लगने दूंगा।।
जैसा कर्म किया है “कृष्णा” बैसा ही फल पाओगे।
अपने पत्थर दिल को प्यारे मोम तरह पिघ लाओगे।।
मै पुरखों की_ बनी हुई पहचान नहीं मिटने दूंगा।
मैं दे दूंगा_ प्राण मगर _ये शान _नहीं मिटने दूंगा।।
✍️ कृष्णकांत गुर्जर