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21 Sep 2019 · 1 min read

मै देख रही हूं..

मै देख रही हूं,
कुछ नामों को
अपने अंत: स्थल से
मिटते हुए..
ये नाम यहां
मैंने कभी नहीं
लिखे थे,
किसने लिखे..
कैसे लिखे..
नहीं खबर,
किन्तु मिटाना इन्हे
कभी चाहा नहीं
मैंने..
हां कभी भर्त्सना
जरूर की थी
इनकी..
दु:खित स्वर से।
किन्तु,
अब कैसे कहूं
नियति से
की
इनका मिटना
मुझे भी मिटा रहा है
भीतर मेरे
एक खालीपन
ला रहा है..
जैसे दीमक लकड़ी
को खा जाती है
बिल्कुल वैसे ही,
ये मुझे भी
खा रहा है…

कैसे कहूं..
की नहीं चाहती
मै
मिटाना इन्हें
कभी नहीं..

©Priya Maithil

Language: Hindi
2 Likes · 2 Comments · 248 Views
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