मै तुम और तन्हाइयां
मै और तुम अब
साथ साथ पास पास
आस पास भी नहीं हैं
अब मेरे पास यदि हैं
तो वो हैं हमारी मधुर स्मृतियाँ
यादों के झरोखे में कैद वो
साथ बीताए वो हसीन स्वर्णिम पल
जो हर पल मेरे मन में चलायमान हैं
और जब कभी मैं तन्हा होता हूँ
मेरी तन्हाई में साथ देती हैं
अविस्मरणीय मधुरिम स्मृतियां
जो भूलने नहीं देती
मेरे अन्दर तुम को
और जिन्दा रखती है एक प्रयास
शायद तुमसे मिलने की तनिक आस
जिस हेतु करता रहता हूँ
अथक प्रयास और खुदा से
बेशुमार असंख्य फरियादें
फिर भी तड़फाता है मुझे
वो तेरी बेवकूफियत और
बेवफाइयों का आलम जिनसे
कतरा कतरा जख्मी है मेरा जो
लेने लगा है नासूर का रूफ
उस से पहले की सांसें थम जाए
आँखें बंद हो जांए दीद से पहले
रूक जाए जीवन काल चक्र
आ जाओ दौड़कर बिन देर
जहां भी ,हो जिस हाल मे हो
समा जाओ मेरी बाहों में
जो आज भी राह ताक रहीं हैं
मेरे जीवन में तेरे आगमन का
मेरे प्रति तेरी वफाओं जफाओं का
सुखविंद्र सिंह मनसीरत