मै एक माटी का दीपक हूँ
मै एक माटी का दीपक हूँ ,
आशा का दीप जलाता हूँ |
जहा होता है घोर अँधेरा
उस तम को दूर भगाता हूँ ||
तेल बाती को मै संग लेकर ,
अपने को स्वयं जलाता हूँ |
जो होते है दीन दुखी जग में
उनको गले सदा लगाता हूँ ||
मै दिवाली की शोभा बनकर
छत की मुंडेर पर सज जाता हूँ |
लक्ष्मी गणेश की पूजा में भी,
मै ही थाली में स्थान पाता हूँ ||
जहाँ होता है कही घोर अँधेरा ,
वहां जाकर भी दीप जलाता हूँ |
अपने घर की दिवाली छोड़ मै ,
दूसरो को दिवाली मै मनाता हूँ ||
बड़े नगरों की चकाचौंध से दूर,
मै गरीब बस्ती में बस जाता हूँ |
जो अनाथ सड़को पर बैठे है ,
उनकी रोजी रोटी बन जाता हूँ ||
कुम्हार के घर मे जन्म लेकर,
फिर भी सबके घर में जाता हूँ |
मेरी होती है हर घर आवभगत,
मै छोटा सा मेहमान बन जाता हूँ ||
मै पूजा पाठ की हर रौनक हूँ ,
मुझे ही प्रज्वलित किया जाता |
घी बाती सब साथ देते है मेरे,
मै अंत तक साथ निभाता हूँ ||
जब शाम ढले मै जल जाता हूँ,
प्रियतम की याद मै दिलाता हूँ |
जब तक प्रियतम न आये द्वार ,
प्रेयसी से प्रतिक्षा मै कराता हूँ ||
जहाँ कही कवि सम्मलेन होता ,
मुझको प्रज्वलित किया जाता है|
माँ सरस्वती की वंदना करके ही ,
तब कवि सम्मलेन शुरू होताहै ||
आर के रस्तोगी
गुरग्राम