मै अकेला न था राह था साथ मे
मै अकेला न था राह था साथ मे
मै तो हारा न था कुछ मिला हाथ मे ।
जो श्रमित हो मिला वो तो मोती सदृश
पर इच्छित मिला बात ही बात मे
पाने की चाह मे देखो छूटे बहुत
चिन्ह अबतक पडे देख लो राह मे।
डूबते ही गये सूर्य सा बन कभी
फिर उगेगे हि निश्चित नवल प्रात मे
है अपने बहुत पर न मेरे हुए
जो थे बुझते गये दिन मे तारे सदृश
आ गयी नव चमक देख लो रात मे।
विन्ध्यप्रकाश मिश्र विप्र