मैरी कॉम
कभी राम सुना कभी श्याम सुना, कभी कोई बड़ा सा नाम सुना।
पर छाती गर्व से फूल उठी तब, जब भारत की बेटी है मैरी कॉम सुना।।
अपनी कमी छुपाने के खातिर, कब कैसे कैसे शब्द पला करते हैं।
शक्ति धारिणी माँ अम्बे की छाया, नारी को जो अबला कहते हैं।।
अरे अबला नहीं बला है कैसी, जरा पूछ तो लेते जो ये वार सहें।
मार मार बस मार मार, हुए धरासाई वो जो इसके मार सहें।।
बिजली सी कौंधी चपल खेल में, ओलंपिक में ऐसा काम करी।
एक के बदले दस दस मुक्के, मार तमगा भारत के नाम करी।।
‘मैंगते चंग्नेइजैंग मैरी कॉम’ मूल भारतीय मणिपुर निवासिन।
मुक्केबाजी स्पर्धा में आठ बार विजयी, हुई विश्व चैंपियन।।
एक मार्च उन्नीस सौ तिरासी, दिन मंगलवार का कुछ खाश रहा।
जब अखम कॉम के गर्भ से जन्मी, टोंपा कॉम के घर उल्लास रहा।।
तब कौन जान सकता था की यह, गुड़िया बड़ी हौशले वाली है।
मुक्केबाजी में अव्वल होगी, और कितने पदक जीतने वाली है।।
नाम कमाएगी इतना की, एक नाम अनोखा ‘प्रतापी कॉम’ होगा।
जाने कितने बच्चों के सपने, अब लड़ना न कभी जरायम होगा।।
मुक्केबाजी ही है मेरी चाहत, यह ‘मैरी कॉम’ ने जब ठाना था।
छोड़ चूल्हा चौका लाँघ देहरी, उसे भारत का मान बढाना था।।
जो कहते थे क्या कर लेगी यह, औरत बस घर की शोभा होती है।
अरे निर्लज़्ज़ आँखे खोल जरा, यह विश्व की चमकीली आभा होती है।।
इनके पंखों को न कतरो, नारी शक्ति को भी सबल परवाज़ तो दो।
गिर कर सम्भले सम्भल के दौड़े, तुम जोश दिलाने को आवाज़ तो दो।।
इतिहास लिख लेने के खातिर, अब उठना, लड़ना, भिड़ना होगा।
अपने अंदर के हुनर जान कर, बिन पंख सभी को उड़ना होगा।।
©® पांडेय चिदानंद “चिद्रूप”
(सर्वाधिकार सुरक्षित ०३/०३/२०२२)