मैने माथा चूम लिया
मेरे दिल की चाह बहुत थी,
उसके दिल का पता नहीं।
दिल में उसको रखकर मैंने,
हाथों से बस पकड़ा था।।
आँखें बंद हुई ज्यो उसकी,
मैने माथा चूम लिया।
सिहर गई और सिमट गई वो,
झट से मुझसे लिपट गई हो।।
मौका मिला दुबारा मुझको,
माथा फिर से चूम लिया।
मेरी इच्छा थी बस इतनी,
उसका मुझको पता नहीं।।
सुर्ख हुए जब गाल थे उसके,
आँखें फिर से बंद हुई थी।
मौका मिला जैसे ही मुझको,
माथा फिर से चूम लिया।।
जाने क्या वह समझ रही थी,
मुझपे शायद बिगड़ रही थी।
दिल में वो भी उलझ रही थी,
चाहत थी उसकी भी ऐसी।।
उसने माथा चूम लिया….
ललकार भारद्वाज