मैने देखा है लोगों को खुद से दूर होते,
मैने देखा है लोगों को खुद से दूर होते,
उनमें से अधिकतर जो लोग थे वो दीवाने थे, कोई किसी शख्स के पीछे था तो कोई किसी परीक्षा के, कोई पैसों के पीछे था तो कोई अच्छा बनने के …
सबमें एक खामी थी कि वो ख़ुद के कभी हो न सके…
क्योंकि सुनीं हैं मैने कहानियां बहुतों की, समझी भी हैं और महसूस भी की हैं, उन सबमें खूबियां थी, काबिलियत थी, हुनर था और क्षमता भी थी,
लेकिन नहीं था, तो केवल एहसास, वो भी इस बात का, कि जीवन का परम लक्ष्य कोई इंसान, पद, परीक्षा, दौलत या वाहवाही नहीं…
बल्कि खुद का ख़ुद को बना लेना है, ख़ुद को संभाले रखना है, खुद को बताते चलना है कि ये जीवन सफ़र है और खुद का साथ ख़ुद को ही देना होता है !