मैना!
मेरे यादों के आंगन में फुदकती, अब भी वो मैना।
जो चुग कर के सभी दाने, कहि है और बसर डाली।
कमा कर लाया था, अरमान तो अपने मैं मुट्ठी भर।
उड़न छू हो गए उसने, जो न उस पर नज़र डाली।।
सुना है छोड़ कर मुझको, गई थी जिसके बगिया में।
वहाँ सय्याद था कोई, जो उसके पर कतर डाली।।
किफ़ायत के कवायद में, लगे रहे उम्र भर हम तो।
जो पाना चाहे न पाए, जो पाए थे बिसर डाली।।
©® पांडेय चिदानंद “चिद्रूप”
(सर्वाधिकार सुरक्षित ३१/१०/२०१९ )