मैं
मैं चला दो कदम
मैं में बहकता गया ।
भूल गया था वो भी है
जिसके आगे सब टूट गया ।।
कितनों को भेज रहे हैं
छंद से टूट गया हूं मैं ।
सोचा मिल लूं उससे
पर मिला ही नहीं हूं मैं ।।
उनकी किताब के हर पन्ने पर
न जाने कितने शब्द बिखरे थे ।
मैं खुद को ढूंढ़ रहा था वहां
वो न जाने किसे ढूंढ़ रहे थे ।।
अब भी एहसास होता है
मैं कितना बेगर्द हो गया हूं।
देख नहीं पाता हूं खुद को
मैं इंसान मतलबी गया हूं ।।